वन्देमातरम का गीत: वंदे मातरम, एक भारतीय गीत, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लोगों को प्रेरित करता है और उन्हें देशभक्ति से जोड़ता है। इस गीत के संगीत और शब्दों का संयोजन भारतीय भाषा, विरासत और संस्कृति को दिखाता है और भारतीय राष्ट्रीयता का एक प्रतीक है। वंदे मातरम गीत के इतिहास, महत्व और भारतीय समाज पर इसके प्रभाव के बारे में इस लेख में चर्चा की जाएगी।
वंदे मातरम का इतिहास:
वंदे मातरम का जन्म भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हुआ था। 1876 में, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने इस गीत के शब्द लिखे और यह उनके पुस्तक “आनंदमठ” में प्रकाशित हुआ था। अरविन्द घोष और रवीन्द्रनाथ टैगोर ने वंदे मातरम को अभिगीत रूप में बदल दिया। इस गीत का संगीत बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के दोस्त अली अकबर खान ने दिया था।
हमारा राष्ट्रीयगीत
भारत का राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ है । इसे ‘जन गण मन’ के बराबर ही दर्जा मिला हुआ है । ‘वंदे मातरम्’ क बंकिमचंद्र चटर्जी ने लिखा था । यह आनन्द मठ नामक उपन्यास से लिया गया है ।
वन्दे मातरम्…..
वन्दे मातरम्
सुजलां सुफलाम्
मलयजशीतलाम्
शस्यश्यामलाम्
मातरम्।
शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीम्
फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम्
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्
सुखदां वरदां मातरम्॥१॥
कोटि कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले
कोटि-कोटि-भुजैर्धृत-खरकरवाले,
अबला केन मा एत बले।
बहुबलधारिणीं
नमामि तारिणीं
रिपुदलवारिणीं
मातरम् ॥२॥
तुमि विद्या, तुमि धर्म
तुमि हृदि, तुमि मर्म
त्वम् हि प्राणा: शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमारई प्रतिमा गडी मन्दिरे-मन्दिरे ॥३॥
त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदलविहारिणी
वाणी विद्यादायिनी,
नमामि त्वाम्
नमामि कमलाम्
अमलां अतुलाम्
सुजलां सुफलाम्
मातरम् ॥४॥
वन्दे मातरम्
श्यामलाम् सरलाम्
सुस्मिताम् भूषिताम्
धरणीं भरणीं
मातरम् ॥५॥
1870 में निर्माण के दौरान, अंग्रेज हुक्मरानों ने ‘गॉड सेव द क्वीन’ गीत गाना अनिवार्य कर दिया था। तब सरकारी अधिकारी बंकिमचंद्र चटर्जी को अंग्रेजों के इस आदेश से बहुत गुस्सा आया और उन्होंने 1876 में संस्कृत और बांग्ला के मिश्रण से एक नए गीत बनाया जिसका शीर्षक था “वंदे मातरम्”। शुरुआत में इसके केवल दो पद संस्कृत में लिखे गए थे।
गीत का विरोध: गीत के पहले दो छंदों में मातृभूमि की सुंदरता का गीतात्मक वर्णन था, लेकिन 1880 के दशक के मध्य में गीत को एक नया आयाम मिलना शुरू हुआ। ऐसा हुआ क्योंकि बंकिम चंद्र ने 1881 में अपने उपन्यास ‘आनंदमठ’ में इस गीत को शामिल किया था। बाद में, कहानी की आवश्यकता को देखते हुए, उन्होंने इस गीत को और अधिक समय तक लंबा किया। ‘दशप्रहरणधारिणी’[1], कमला[2] और वाणी[3] के सिर्फ उद्धरण बाद में जोड़े गए भाग में दिए गए हैं। लेखक होने के नाते, बंकिमचंद्र को ऐसा करने का पूरा अधिकार था और इस पर कोई तत्काल प्रतिक्रिया नहीं हुई। यानी तब किसी ने नहीं कहा कि यह मूर्ति की पूजा करने वाला गीत या ‘राष्ट्रगीत’ नहीं है। यह राष्ट्रगीत बाद में एक ऐसा गीत बन गया, जिसमें सांप्रदायिक निहितार्थ थे, जब मुस्लिम और हिन्दू सांप्रदायिक ताकतें उभरीं। 1920 और 1930 के दशक में इस गीत की आलोचना शुरू हुई।
15 अगस्त 1947 को प्रातः 6:30 बजे पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर का राग-देश में निबद्ध ‘वन्देमातरम’ का सजीव प्रसारण आकाशवाणी पर हुआ। ‘वन्देमातरम’ ने आज़ादी की सुहानी सुबह देशवासियों को राष्ट्रभक्ति का पाठ पढ़ाया। ओंकारनाथ जी ने पूरा गीत स्टूडियो में खड़े होकर गाया, जो राष्ट्रगीत का पूरा सम्मान था। इस प्रसारण को सरदार बल्लभ भाई पटेल का पूरा श्रेय जाता है। ‘दि ग्रामोफोन कम्पनी ऑफ़ इंडिया’ में पं. ओंकारनाथ ठाकुर का यह गीत STC 048 7102 में दर्ज है
24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा ने फैसला किया कि ‘वन्देमातरम’ गीत की स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, इस गीत के पहले दो भागों को ‘जन गण मन..’ के समान मान्यता दी जाएगी। संविधान सभा को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने यह फैसला सुनाया। “वन्देमातरम” गीत को राष्ट्रगान के समकक्ष मान्यता मिलने के बाद, बहुत से महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अवसरों पर इसे स्थान मिला। आज भी ‘वन्देमातरम’ से ही ‘आकाशवाणी’ के सभी केंद्रों का प्रसारण होता है। आज भी कई साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्थाओं में ‘वन्देमातरम’ गीत का पूरा गायन होता है
इतिहास: 1905 में बंगाल के स्वदेशी आंदोलन ने वंदे मातरम् को राजनीतिक नारा बनाया। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसे गाया, जो राष्ट्रवादी आंदोलन की अगुआई की, और अरविंद घोष ने बंकिमचंद्र को राष्ट्रवाद का ऋषि कहा। 1920 तक, सुब्रह्मण्यम भारती द्वारा विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनूदित होकर यह गीत राष्ट्रगान बन गया था। हालाँकि, 1930 के दशक में वंदे मातरम् की इस हैसियत पर बहस हुई और लोगों ने इस गीत की मूर्तिपूजकता पर आपत्ति व्यक्त की। जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में गठित एक समिति की सलाह पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1937 में इस गीत के उन हिस्सों को छाँट दिया, जिनमें बुतपरस्ती का भाव अधिक प्रबल था, और इसके संपादित हिस्से को राष्ट्रगान के रूप में अपना लिया
राष्ट्रगीत का दर्जा: वंदे मातरम् को आज़ाद भारत का नया संविधान बनाते समय राष्ट्रगान के रूप में नहीं अपनाया गया था और न ही उसे राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया था। 24 जनवरी 1950 को, भारत के पहले राष्ट्रपति और संविधान सभा के अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद ने वंदे मातरम् को राष्ट्रगीत घोषित किया ]

यह गीत, स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रगीत की भूमिका के कारण, बंगाल में आज़ादी की लड़ाई में जोश भरने के लिए गाया जाने लगा। यह गीत लोगों में धीरे-धीरे लोकप्रिय हो गया। यह बहुत लोकप्रिय था, इसलिए ब्रिटिश सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करना शुरू कर दिया। 1896 में, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने यह गीत कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक अधिवेशन में भी गाया था। पाँच साल बाद, 1901 में कलकत्ता में एक और सम्मेलन में चरन दास ने इसे फिर से गाया। 1905 में बनारस में हुए एक सम्मेलन में सरला देवी ने इस गीत को गाया।
कांग्रेस के बैठकों के अलावा भी इस गीत का इस्तेमाल आज़ादी की लड़ाई में हुआ है। वंदे मातरम नामक जर्नल लाला लाजपत राय ने लाहौर से शुरू किया था। वंदे मातरम, अंग्रेज़ों की गोली का शिकार बनकर मरने वाली आज़ादी की दीवानी मातंगिनी हज़ारा का अंतिम शब्द था। 1907 में मैडम भीकाजी कामा ने जर्मनी के स्टटगार्ट में एक तिरंगा फहराया, जिसके मध्य में सिर्फ ‘वंदे मातरम्’ लिखा था।
गीत का इतिहास: वंदे मातरम को बंगाल के कांतल पाडा गांव में 7 नवंबर 1876 को बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने लिखा था।
1882 में, वंदे मातरम बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय का प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंदमठ’ में इसका समावेश हुआ।
1896 में कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन में रवीन्द्र नाथ टैगोर ने बंगाली शैली में लय और संगीत के साथ ‘वंदे मातरम’ को पहली बार गाया।
‘वंदे मातरम’ का पूरा गीत बांग्ला भाषा में है, लेकिन पहले दो पद संस्कृत में हैं।
अरविंद घोष ने वंदे मातरम् का पहला अंग्रेज़ी अनुवाद किया था।
कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में दिसंबर 1905 में गीत को राष्ट्रगीत घोषित किया गया, जिससे बंग-भंग आंदोलन में राष्ट्रीय नारा बन गया।
1906 में, गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में देवनागरी लिपि में प्रस्तुत किया था।
1923 में, कांग्रेस अधिवेशन में वंदे मातरम् का विरोध हुआ।
28 अक्तूबर 1937 को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में पं. नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, सुभाष चंद्र बोस और आचार्य नरेन्द्र देव की समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि इस राष्ट्रगीत को गाना अनिवार्य नहीं था। रवीन्द्र नाथ टैगोर ने इस समिति का नेतृत्व किया था।
14 अगस्त 1947 की रात्रि में संविधान सभा की पहली बैठक का उद्घाटन वंदे मातरम से हुआ, जो जन गण मन… के साथ समाप्त हुआ।
1950 में दो राष्ट्रीय गाने बनाए गए: वंदे मातरम और जन गण मन।
वंदे मातरम का महत्व:
वंदे मातरम का महत्व: वंदे मातरम गीत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों में एकता की भावना पैदा की। इस गीत ने लोगों को देशभक्ति का भाव और देशभक्ति का अभिवादन किया। वंदे मातरम में कहा गया है कि “वंदे मातरम्, सुजलाम सुफलाम मलयजशीतलाम्” देश की समृद्धि और एकता का प्रतीक है। इस गाने में भारत माता और देश की सुंदरता का भी वर्णन है।
वंदे मातरम गीत का भारतीय समाज पर प्रभाव यह गीत देशभक्ति, भारतीय संस्कृति और स्वाधीनता के प्रति लोगों को भावुक करता है। वंदे मातरम को लोग गर्व से गाते हैं और विभिन्न राष्ट्रीय अवसरों पर गाया जाता है। इस गीत में लोग देशभक्ति व्यक्त करते हैं और राष्ट्रीय एकता का संदेश देते हैं।
Vande Mataram का महत्वपूर्ण संदेश:
Vande Mataram का महत्वपूर्ण संदेश: एकता इस गीत में भारत को माता के रूप में वंदना की गई है, जो बताता है कि हर भारतीय एक परिवार का हिस्सा है। यह गीत भाईचारे और सद्भावना का संदेश देता है और लोगों को एकजुट होने की प्रेरणा देता है। वंदे मातरम गीत का महत्वपूर्ण संदेश आज भी भारतीय समाज में लोकप्रिय है और उत्साह से गाया जाता है।
नेताओं का वंदे मातरम तक्रार:
नेताओं का वंदे मातरम तक्रार: वंदे मातरम गीत के गाने को लेकर कई बार बहस हुई है। कुछ नेता इसे सेक्युलरिज्म के मुद्दे उठाने वाले धार्मिक गीत के रूप में देखने की कोशिश करते हैं। यद्यपि, अधिकांश लोग इसे राष्ट्रीय गाना मानते हैं और इसे राष्ट्रीय समारोहों पर गाया जाना आम है।
वंदे मातरम एक संबोधन और आदर्श नहीं है, बल्कि एक गाना है। इस गीत में हम अपने देश के प्रति अपनी भावना व्यक्त करते हैं और सभी भारतीयों को एकता का संदेश देते हैं। यह गीत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देशभक्ति को जगाने वाला था और आज भी महत्वपूर्ण है। हम इस गीत को गाकर एक परिवार बन जाते हैं और अपने देश पर गर्व महसूस करते हैं।
5 दिलचस्प प्रश्न:
- वंदे मातरम गीत के शब्द किसने लिखे?
- वंदे मातरम के संगीतकार का नाम बताओ।
- यह गीत कब लिखा गया?
- वंदे मातरम गीत में दिए गए मूल संदेश क्या है?
- क्या वंदे मातरम एक धार्मिक गीत है?
इस लेख में वंदे मातरम गीत का महत्व, प्रभाव और संदेश समझाया गया है। यह गीत हमारे देश के गर्व का प्रतीक है और स्वतंत्रता संग्राम से आज तक भारतीय समाज में व्याप्त है। हम सभी भारतीयों को अपने देश का गर्व महसूस करने और राष्ट्रीय एकता के संदेश को एकजुट होकर प्रगति करने की उम्मीद करते हैं।